आपके बच्चे कहीं कुंठा और तनाव में तो नहीं जी रहे हैं

उस दिन अचानक तृप्ति को रोते देखकर मैं चौंक उठा रोते हुए वह बड़बड़ा रही थी श्श्मम्मी आप गंदी होए मुझे प्यार नहीं करतीण्ण्ण्ण्ण् जब देखो मुझे मारती रहती होए डांटती होण्ण्ण्ण्ण्ण् और वह फिर रोने लगी। मैंने देखाए थोड़ी देर बाद वह चुप होकरए मिठाई खाती हुई खेलने लगी। मगर उसकी बड़बड़ाहट मुझे व्यथित किये दे रही थी।

मुझे एक और घटना याद हो आयी। एक परिवार में मां बाप के अलावा तीन बच्चे थे। बड़े बच्चे प्रभात को मैं बचपन से देखता आ रहा हॅू। शुरू.शुरू में उसके पिता जी उसे पढ़ाते और थोड़ी सी गलती होने पर गाली देना और मारना शुरू कर देते। धीरे.धीरे प्रभात मार खाने का आदी हो गया। रटने की आदत ने उसे परीक्षा भवन में रटा हुआ पाठ भूलने की बीमारी लगया दी। बार.बार फेल होने से पढ़ाई के प्रति उसमें अरूचि पैदा हो गयी। इसमें मां के ताने और पिता की मार ने घी का काम किया। एक बार तो गजब हो गया पिटाई के जवाब में मैंने प्रभात को कहते पाया श्श्तुम लोग मेरे मां.बाप नही होए न ही मेरा कोई भाई.बहन है। आज ठीक हैए मैं छोटा हूं इसलिए मुझे मार रहे होए जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो मैं भी एक.एक को मारूंगाण्ण्श्श् उसकी बातों में छिपे दर्द ने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया।

वास्तव में बच्चों का एक अलग संसार होता है। उनकी सोचए मुस्कराहट और तोतली भाषा जहां उनके व्यक्तित्व को निखारती हैए वही मां.बापए भाई.बहन द्वारा दिया गया माहौल उन्हें नयी fजंदगी शुरू करने के लिए संस्कारित करता है। यहां यह बात विचारणीय है कि हर कोई स्वस्थए सुंदर बच्चा चाहता हैए मगर वे इन बच्चों के प्रति सजग कितने होते हंै घ् आज सुंदरता का अर्थ केवल गोरी चमड़ी से लिया जाता है। वस्तुतः सुंदरता अपने आप में बड़ा विस्तृत अर्थ रखती है। एक स्वस्थ संस्कारित बच्चा ही सुंदर होता हैए शरीर का रंग उसमें एक निखार भर लाता है।

मेरा एक मित्र है सुब्रतए समाजशास्त्र उनका विषय है। उनसे जब भी मेरी चर्चा होती हैए उनके सामाजिक.मनोवैज्ञानिक विश्लेषण मुझे सोचने की दिशा देते है। श्बच्चों में कुंठा और हमारा कर्तव्यश् पर उनका कहना था कि भौतिक सुख.सुविधाओं की दौड़ में जैसे हम तनावग्रस्त रहते हैं। वैसे ही ये बच्चे भी तनाव भरी fजंदगी जीते हंै। खिलखिलाती और अपनी तोेतली बोली से सबको मोहित करने वाली तृप्ति जब रोती हुई उपरोक्त बातें कहने लगती है तो हमें लगता है कि तृप्ति अब बड़े.बुजुर्गो जैसी बातें करने लगी है। अगर हम कहें कि उसकी ये बातें प्रतिक्रियात्मक हैए तो आप या तो हंस कर टाल जायेंगे या कहने लगेंगे. श्श्कुंठाए तनावए मानसिक दबाव आदि बातों से भला इन बच्चों का क्या वास्ता ! फिर ये बातें तो उम्र के साथ होती है। उन्हंे किस बात का तनाव घ् उन्हें तो बस खानेए खेलनेए हंसने और शरारत करने से मतलब होता है। हांए उनके लिए हम जरूर तनाव और कुंठा की fजंदगी जीतें है।श्श्

ऐसा कहकर हम अपने को अंधेरे में तो रखते ही हैं हमसे कभी.कभी ऐसी भूल हो जाती है जिसका परिणाम बच्चे fजंदगी भर भुगतते हैं। असलियत यह है कि आज के बदलते परिवेश मेंए जहां fहंसा रोज की खबर का एक साधारण हिस्सा बन गयी है। टूटते सबंधए मजबूर सच बनाते जा रहे हंै। सुविधावादी संस्कृति हमारी परंपराओं और संस्कारों को निगलती जा रही है। प्रतियोगिता और स्पर्धा जीवन के हर निर्णय पर हावी होती जा रही है।

15 वर्षीया मुक्ता को डाॅक्टर ने पूरी तरह चैक करके बताया कि इसे कोई बीमारी नहीं है। जब fचंतित मां कहने लगीए श्डाॅक्टर साहबए इसे तो कुछ हजम नहीं होता। कुछ खाती पीती नहींए दिन भर शरीर तपता रहता है। ऐसे में परीक्षा कैसे देगीए कैसे पढ़ पायेगीण्ण्ण्ण्ण्घ्श् डाॅक्टर ने गंभीर स्वर में कहांए श्श्वास्तव में बहन जीए मुक्ता को आपकी fचंता लग गयी है। आप इसकी पढ़ाई को ले कर इतनी अधिक परेशान हैं कि आपने इसे इसकी fजंदगी और मौत का सवाल बना दिया है। इसलिए यह श्टेपाªसश् यानी मानसिक दबाव का शिकार हो गयी है। परीक्षा के दिनों में बच्चों को ऐसा प्रायः हो जाता है। लक्षण सबके अलग.अलग होते हंै.किसी को सिर में दर्दए किसी को दस्तए किसी को बुखारए तो किसी को रात भर नींद नही आती। पर बीमारी सबकी एक जैसी होती है। बच्चे अपने मन की बातों को व्यक्त नहीं कर पाते या करते भी हैं तो हम या तो उसे समझते नही या नजर अंदाज कर देते हैं। पढ़ाई ही क्याए बच्चों पर आज अनेक प्रकार के दबाव है जिनसे बच्चे भी बड़ांे की तरह तनाव के शिकार हो रहे हंै। इतनी छोटी उम्र्र में जब श्श्टेंशनश्श् रहेगा तो बड़े होते.होते वही ब्लड प्रेशरए हार्ट और नर्वस होने जैसी बीमारी में बदल जायेगाण्ण्ण्ण्।श्श्

न्यूयाॅर्क के मनोचिकित्सक और सोसाइटी आॅट एडोलेसेंट साइकिस्ट्री के नयूज लेटर के भूतपूर्व संपादक डाॅण् जेण् लेफर का कहना है कि श्श्उपेक्षा से बच्चों का दिल टूट जाता है। बच्चे को अपनी जिज्ञासाए विकास या उपलब्धि का कोई भी सामान्य भावनात्मक पुरस्कार नहीं मिलता। जब कोई बच्चा पहली बार चलना सीखता है तो सामान्य माता.पिता की क्या प्रतिक्रिया होती है घ् वे प्रसन्न होते हंै और बच्चे की प्रशंसा करके उसे प्रोत्साहित करते हंै। लेकिन जिस घर में प्यार और भावना नाम की कोई चीज नहीं होतीए वहां बच्चे की इस प्रगति पर कोई ध्यान नही दिया जाता। अगर मां.बाप में से किसी का ध्यान इस ओर जाता भी है तो उनमें से एक तरह की झंुझलाहट सी होती है। क्योंकि अब बच्चे की ज्यादा देखरेख करना जरूरी हो जाता है।श्श्



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