बच्चों के प्रति हम कितने सचेत हैं


            पिछले दिनों मैं एक स्कूल गया। वहां मैं प्राचार्य से बात कर रहा था। इतने में किसी कक्षा से बच्चे को डांटने की आवाज आने लगी। मैं ध्यान से सुनने लगा कि आखिर किस बात के लिए बच्चे को डांट पड़ रही है। मैडम बच्चे को होमवर्क पूरा नहीं करने के लिए डांट रही थी। अंत में बच्चे को दो पीरियड खड़े होकर गुजारना पड़ा। पूछने पर पता चला कि पिछली शाम को बच्चे के पापा-मम्मी किसी पार्टी में बच्चे के साथ गये थे। पार्टी से वापस आने पर बच्चा सो गया। सुबह पापा-मम्मी देर से उठते हैं, अतः सुबह भी उसका होमवर्क पूरा नहीं हो पाया, जिसकी सजा उसे आज भुगतनी पड़ रही है। उसके साथ अक्सर ऐसा ही होता है। कभी कहीं पार्टी, तो कभी और कहीं पार्टी। कभी घर में मित्रों का जमाव, तो कभी पिक्चर का दौर। ऐसे में बच्चे की कौन सुनता है। कितने लोग उनके प्रति सजग रहते हंै ? ऐसे में बच्चे की कौन सुनता है। कितने लोग उनके प्रति सजग रहते हैं ? ऐसे में बच्चे के मन में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

            मैंने प्रचार्य महोदय से चर्चा की। उनका कहना था कि प्रत्येक स्कूल के कुछ नियम प्रतिबंध होते हैं जिनका कड़ाई से पालन किया जाना निहायत जरूरी होता है। सबसे पहले हम बच्चों को सिखाते हैं कि प्रतिदिन यूनिफार्म में नियत समय पर होमवर्क पूरा करके स्कूल आयें तथा यहां अनुशासित रहें बड़ों का कहना माने तथा किसी बात पर आपस में लड़ने-झगड़ने के बजाय अपने टीचर से कहें। इसके बाद भी कुछ बच्चे इसलिये बिगड़ जाते हैं क्योंकि घर में उनके पापा-मम्मी बच्चे पर पूरा ध्यान नहीं देते। आज की महंगाई की मार ने जहां महिलाओें को घर की दहलीज लांघने पर को मजबूर कर दिया है, वहीं पुरूषों को व्यस्त बना दिया है। दिन भर बाहर रहने के बाद घर आने पर थोड़ा आराम करना जरूरी हो जाता है। इसके बाद उन्हें घर के कामों से जूझना पड़ता है। रोजमर्रा की इसी जिदंगी ने उन्हें इतना व्यस्त बना दिया है कि वे उनकी ओर समुचित ध्यान नहीं दे पाते। होमवर्क पूरा कराने और उनकी छोटी-मोटी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे पाते। ऐसी बात नहीं हैं कि नौकरी पेशा अभिभावक ही बच्चों को समय नहीं देते वरन् व्यवसायी अभिभावकों के घर भी यही स्थिति है। कुछ लोग तो बच्चों को स्कूल इसलिये भेजते हैं कि उनसे कम से कम दिन भर मुक्ति तो मिल जाती है। ऐसे में उनसे होमवर्क कराने की बात सोची ही नहीं जा सकती, मगर हम भी अपने नियम में परिवर्तन नहीं कर सकते।

            बहुत सी ऐसी वस्तुएं हैं जो बच्चे के स्कूल जाने के लिये जरूरी है। यदि आप इनकी उपेक्षा करते हंै तो निश्चित रूप से आपके बच्चे को स्कूल में दंड मिलेगा। स्कूल जाने के पहले देख लें कि कोर्स की किताबें, कापियां, पेन, पेंसिल, ज्यामेट्री बाक्स, स्केल आदि उसके बैग में है या नहीं यदि उनमें से कोई चीज उसके पास नहीं है तो सहपाठियों के सामने डांट सुनते उसे बुरा लगेगा। दूसरी ओर स्कूल के नियम के अनुसार उसके पास पूरा यूनिफार्म, जूता-मोजा, टाई, बेल्ट सब साफ सुथरा होना चाहिये। आपकी लापरवाही के कारण स्कूल में मिले दंड का बच्चे के ऊपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तथा वह आपके बारे में गलत धारणा बना लेगा जिससे वह भविष्य में प्रतिक्रियावादी भी बन सकता है।

            यदि आपकी स्थिति कभी ऐसी बन जाये कि बच्चे के स्कूल ले जाने सम्बन्धी कोई आवश्यक वस्तु समय पर नही ला सके तो स्यवं इस सम्बध में उसके टीचर से बात करें। इससे आपका बच्चा अनावश्यक डांट से बच जाएगा। यदि आप नौकरी पेशा है अथवा व्यवसायी है तो भी आप रात्रि में होमवर्क पूरा अवश्य करायें तथा उसकी समस्याओं के सम्बन्ध में चर्चा करें तथा उचित परामर्श दें। सुबह जल्दी उठें तथा बच्चों को भी जल्दी उठाकर नित्य कर्म से निबटाने की आदत डालें। याद रखें की अच्छे संस्कार बच्चों में लाने के लिये पहले अपनी आदतों को ऐसा बनायें जिसका असर बच्चों में अच्छा पड़े।

            अधिकतर महिलायें अपने कामों में इतना व्यस्त रहती है कि उन्हें अपने बच्चों के कार्यो के प्रति रूचि नहीं होती। देखा यह गया है कि बच्चे क्या कर रहे हैं, कहाॅं गये है, क्या खा-पी रहें हैं आदि की उन्हें fचंता नहीं रहती। यहां तक कि उनके ड्रेस को कभी भी धो डालती हैं, समय पर डेेª सूखता नहीं जिससे बच्चें को स्कूल में डांट खानी पड़ती है।

            बच्चों को स्कूल में जो पढ़ाया जाता है, दूसरे ही दिन उसे याद करके आने को कहा जाता है और जो काम घर से करके लाने को दिया जाता है, उसे आप नियमित रूप से पूरा करवायें। यदि आप इन बातों के प्रति सचेत रहें तो आपके बच्चेे भी पढ़ाई करने में टाल-मटोल नहीं करेंगे और उसमें समय पर काम करने की आदत पड़ जायेगी। आपकी लापरवाही अथवा कल पर छोड़ा गया काम उसे आलसी बना देगा जिसका उन्हें दंड भुगतना पड़ेगा। अतः आप सचेत रहें। बच्चों को स्कूल में जो दंड मिलता है, उसके लिये केवल बच्चों को ही दोषी ठहराना न्याय संगत नहीं है। इसके लिए अभिभावक स्वयं जिम्मेदार हैं और जिम्मेदार हैं उनकी उपेक्षा नीति। प्राचार्य महोदय ने मुझे बताया कि हम प्रति वर्ष पालक दिवस मनाते हैं जिसमें बच्चों के पालकों और अभिभावकों को आमंत्रित करते है। हम ऐसा महसूस करते हैं कि इससे अभिभावक और टीचर के बीच बच्चों की जानकारी का आदान प्रदान हो सकेगा। मगर हमें यह कहते अफसोस हो रहा है कि अधिकांश पालक इसमें भाग नहीं लेते। इसी प्रकार हर माह बच्चे की प्रोगेस रिपोर्ट उनके पालकों के पास भेज दी जाती है। उसमें पालकों के लिए स्पष्ट निर्देश होता है कि वे बच्चें की रिपोर्ट को पढ़े, समझे और आवश्यकतानुसार टीचर से सलाह-मशविरा करें मगर वे इसके प्रति उदासीन होते है तथा रिपोर्ट में हस्ताक्षर करके वापस कर देते हैं। ऐसे पालकों से बच्चों के प्रति क्या उम्मीद की जा सकती है। मगर कुछ पालकों को टीचर से शिकायत होती है। उनसे सम्पर्क करने पर वे ट्यूशन पढ़ाने के बारे में कहते हैं। मेरे ऐसा कहने पर कि इसमें कुछ तथ्य हो सकता है ? उन्होनें बताया कि ट्यूशन का मतलब है नियमित पढ़ाई। ये स्वयं बच्चे को नियमित पढ़ा सकते हैं, मगर अभिभावक इसे उल्टा सोचते हैं। बात जो भी हो मगर पालकों को अपने बच्चों के बारे में सचेत रहना चाहिये।


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